ऋग्वेद -
मुख्य आचार्य - पैलः
ऋत्विक - होता
मुख्य देवता - अग्नि
मुख्य विषय - देव स्तुतिः
उपवेद - अयुर्वेद
शाखाएं - 21 (महाभाष्यानुसार) महऋषि पतञ्जलि अनुसारं ऋग्वेदस्य एकविंशतिः शाखाः सन्ति । तेषु मध्ये पञ्च एव शाखाः प्राप्ताः । तेषां नामानि इदं सन्ति -
शाखाएं - 5 (चरणव्यूह अनुसार) -
1. शाकल -= आज केवल शाकल शाखा ही उपलब्ध है । ( इदानीं प्राप्त शाखा )
2. वाष्कल
3. आश्वलायन
4. शांखायन
5. माण्डूकायन ।
विभाजन - दो प्रकार का है -
1. अष्टक क्रम - 8 अष्टक, 64 अध्याय, प्रत्येक अध्याय में 8 अध्याय हैं । वर्ग -2006,
2. मण्डल क्रम - 10 मण्डल, सूक्त/ऋचाएं - 1017 + 11 बाल्खिल्य सूक्त = 1028, मन्त्र - 10580.25
मण्डलों के ऋषि क्रम से -
क्र. सं. - मण्डल ऋषि - सूक्त - मन्त्र = विशेष
1 - शतार्चिन - 191 - 2006
2 - गृत्समद - 43 - 429
3 - विश्वामित्र - 62 - 617
4 - वामदेव - 58 - 589
5 - अत्रि - 87 - 727 = आत्रेय मण्डल
6 - भारद्वाज - 75 - 765
7 - वशिष्ठ - 104 - 841 = 2 से 7 तक वंश मण्डल
8 - काण्व - 103 - 1716 = बालखिल्य सूक्त
9 - मधुच्छन्दा - 114 - 1108 = पवमान मण्डल, सोम मण्डल ।
10 - भृगु - 191 - 1754 = अर्वाचीन मण्डल ।
क्रम से याद रखने के लिये ट्रिक - मगृ, विवा, अभावक, मभृ ।
ब्राह्मण ग्रन्थ - 2
1. ऐतरेय ब्राह्मण - शाकल शाखा - महीदास ऐतरेय कृत, 40 अध्याय, 8 पञ्चिकाएं, प्रत्येक पञ्चिका मे 5-5 अध्याय, मुख्यरुप से सोम याग का वर्णन, राज्याभिषेक तथा ऋणत्रयं मुक्ति, शुनः शेप आख्यान(हरिश्चन्द्रोपाख्यान), विष्णुर्वै यज्ञः ।
2. शांखायन ब्राह्मण (कोषतकि ब्राह्मण) - वाष्कल शाखा - कौषितक कृत, 30 अध्याय, 226 खण्ड, प्रथम 6 अध्यायों में अग्न्याधान, अग्निहोत्र, दर्शपौर्णमास, पाक यज्ञ आदि यज्ञों का वर्णन ।
आरण्यक ग्रन्थ - 2
1. ऐतरेय - 5 आरण्यक, 28 अध्याय,
2. शांखायन ( कोषतकि) - 25 अध्याय, 3 से तक अध्यायों की संज्ञा कौषीतकि उपनिषद् है । 1 और 2 अध्याय में महाव्रत का वर्णन, 7 से 8 अध्याय में संहितोपनिषद् वर्णनम्, 9 नवमें अध्याये प्राणविद्या का वर्णन ।
उपनिषद् ग्रन्थ - 2
1. ऐतरेयोपनिषत् -शाकल शाखा - 3 अध्याय, गद्य विधा, मन्त्र - 33, विश्वोत्पत्ति च आत्मा का विस्तृत विवेचन ।
2. शांखायन (कोषतकि ) -
शिक्षा ग्रन्थ - पाण्निय शिक्षा
प्रातिशाख्य ग्रन्थ - ऋक् प्रातिशाख्य (पार्षद सूत्र) - 18 पटल, शौनक कृत,
श्रोत सूत्रं -
1. आश्वलायन, आश्वलायन कृत - 4 अध्याय
2. शांखायन, सुयज्ञ कृत - 6 अध्याय
गृह्य सूत्रं -
1. आश्वलायन
2. शांखायन
धर्मसूत्रं - एक मात्र वसिष्ठ धर्मसूत्रम्
सूक्त =
प्रथम् सूक्त - अग्नि सूक्त (ऋग्वेद 1.1.) -200सूक्त
अन्तिम् सूक्त - संज्ञान सूक्त, 4 मन्त्र
संज्ञान सूक्त -(10.191)
मण्डल - दशम
ऋषि - आंगिरस
देवता - अग्नि व संज्ञान
छन्द - त्रिष्टुप व अनुष्टुप (1-2 अनुष्टुप)
कुल मन्त्र - 4
संज्ञान का अर्थ - समानता, संगठन
1. संसमिद्युवसे वृषन्नग्ने विश्वान्यर्यआ ।
इकस्पदे समिध्यसे स नो वसुन्याभर ॥
अर्थ - हे वृषन !(वर्षा करने वाला) कामना की वर्षा करने वाले हे अग्निदेव ! आप समस्त विश्व के धन को इकत्रित कर लाते हैं और आप यज्ञ की अग्नि मे प्रज्ज्वलित होते हैं, इसलिए हे अग्निदेव ! आप हमारे लिए भी धन को लेकर आओ ।
* यहाँ धन शब्द का अर्थ संपत्ति के अर्थ में नहीं है ।
2. संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम ।
देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जनानां उपासते ॥
3. समानो मन्त्रः समितिः समानी समानं मनः सह चिन्तमेषाम् ।
समानं मन्त्रमभिमन्त्रये वः समानेन वो हनिषा जुहोमि ॥
4 समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः ।
समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति ॥
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सूर्य
सूक्त - (1.115)
मण्डल
- प्रथम
ऋषि
- कुत्स
देवता
- सूर्य
छन्द
- त्रिष्टुप
मन्त्र
- 6
1.
चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य
वरूणस्याग्नेः ।
आप्रा द्यावापृथिवी अन्तरिक्षं,
सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च ॥
2.
सूर्यो देवीमुषसं रोचमानां,
मर्यो न योषामभ्येति पश्चात् ।
यत्रा नरो देवयन्तो युगानि,
वितन्वते प्रति भद्राय भद्रम् ॥
*
सूर्य की प्रिया उषा ।
3.
भद्रा अश्वा हरितः सूर्यस्य,
चित्रा एतग्वा अनुमाद्यासः ।
नमस्यन्तो दिव आ पृष्ठमस्थुः,
परि द्यावापृथिवी यन्ति सद्यः ॥
* सूर्य के अश्व हरित वर्ण के हैं ।
4.
तत्सूर्यस्य देवत्वं तन्महित्वं,
मध्या कर्तोर्विततं सं जभार ।
यदेदयुक्त हरितः सधस्थादाद्रात्री वासस्तनुते
सिमस्मै ॥
5.
तन्मित्रस्य वरूणस्याभिचक्षे,
सूर्यो रूपं कृणुते द्योरुपस्थे ।
अनन्तमन्यद्रुशदस्य पाजः,
कृष्णमन्यद्धरितः सं भरन्ति ॥
6.
अद्या देवा उदिता सूर्यस्य,
निरंहसः पिपृता निश्वद्यात् ।
तन्नो मित्रो वरूणो ममहन्तामदितिः सिन्धुः
पृथिवी उत द्यौः ॥
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