वेद मन्त्रों के पाठ के ग्यारह तरीके -


चारो वेद के मन्त्रो को लाखों वर्षो से संरक्षित करने के लिए, वेदमन्त्रों के पदो में मिलावट ,कोई अशुद्धि न हो इसलिए हमारे ऋषि मुनियो ने 11 तरह के पाठ करने की विधि बनाई ।
वेद के हर मन्त्र को 11 तरह से पढ सकते हैं ।
11 पाठ के पहले तीन पाठ को प्रकृति पाठ व अन्य आठ को विकृति पाठ कहते हैं।
     प्रकृति पाठ - 3
 1 संहिता पाठ
 2 पदपाठ
 3 क्रमपाठ 

   विकृति पाठ - 8
4 जटापाठ
5  मालापाठ
6 शिखापाठ
7  लेखपाठ
8  दण्डपाठ
9 ध्वजपाठ
10 रथपाठ
11 घनपाठ

         1 - संहिता पाठ
 इसमे वेद मन्त्रों के पद को अलग किये बिना ही  पढा जाता है।
 जैसे -
 अ॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तं य॒ज्ञस्य॑ दे॒वमृ॒त्विज॑म् । होता॑रं रत्न॒धात॑मम् ॥

          २ पदपाठ
इसमें पदो को अलग करके क्रम से उनको पढा जाता है
अ॒ग्निम् । ई॒ळे॒ । पु॒रःऽहि॑तम् । य॒ज्ञस्य॑ । दे॒वम् । ऋ॒त्विज॑म् । होता॑रम् । र॒त्न॒ऽधात॑मम् ॥

         ३ क्रम पाठ
पदक्रम - १ २ | २ ३| ३ ४| ४ ५| ५ ६
क्रम पाठ करने के लिए पहले पदों को गिनकर फिर फिर पहला पद दूसरे पद के साथ । दूसरा तीसरे पद के साथ तीसरा चौथे पद के साथ इस तरह से पढा जाता है ।
जैसे -
अ॒ग्निम् ई॒ळे॒| ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम् |  पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑ |
य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| दे॒वम् ऋ॒त्विज॑म्| ऋ॒त्विज॑म् होता॑रम्|
होता॑रम् र॒त्न॒ऽधात॑मम्||

        ४ जटा पाठ
पदक्रम -   १ २| २ १| १ २|
                २ ३| ३ २| २ ३|
                ३ ४| ४ ३| ३ ४|
                ४ ५| ५ ४| ४ ५|
                ५ ६| ६ ५| ५ ६|
                ६ ७| ७ ६| ६ ७|
 जैसे-      अ॒ग्निम् ई॒ळे॒|  ई॒ळे॒ अ॒ग्निम्| अ॒ग्निम् ई॒ळे॒| ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम्| पु॒रःऽहि॑तम् ई॒ळे॒| ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम्| पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑| य॒ज्ञस्य॑ पु॒रःऽहि॑तम्| पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑| य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| दे॒वम् य॒ज्ञस्य॑| य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| दे॒वम् य॒ज्ञस्य॑| य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| दे॒वम् ऋ॒त्विज॑म्| ऋ॒त्विज॑म् दे॒वम्| दे॒वम् ऋ॒त्विज॑म्| ऋ॒त्विज॑म् होता॑रम्| होता॑रम् ऋ॒त्विज॑म्|      ऋ॒त्विज॑म् होता॑रम्| होता॑रम् र॒त्न॒ऽधात॑मम्| र॒त्न॒ऽधात॑मम् होता॑रम्| होता॑रम् र॒त्न॒ऽधात॑मम्||

         ५ माला पाठ
जिस तरह  पांच छह फूलो को लेकर माला गूथी जाती है सेम उसी तरह इसमे क्रम बनता है ।
पदक्रम-  १ २ ६ ५|
              २ ३ ५ ४|
              ३ ४ ४ ३|
              ४ ५ ३ २|
              ५ ६ २ १|
  अ॒ग्निम् ई॒ळे॒ र॒त्न॒ऽधात॑मम् होता॑रम् | ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम् होता॑रम् ऋ॒त्विज॑म्| पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑ य॒ज्ञस्य॑ पु॒रःऽहि॑तम्|....

        ६ शिखापाठ
पदक्रम-  १ २| २ १ | १ २ ३| 
              २ ३| ३ २ | २ ३ ४|
              ३ ४| ४ ३ | ३ ४ ५|
              ४ ५| ५ ४ | ४ ५ ६|
              
     ७ ध्वज पाठ
यह क्रम पाठ की तरह ही होता है ।       
पदक्रम-  १ २ २ ३ ३ ४ 
              ३ ४ २ ३ १ २|
              ४ ५ ५ ६ ६ ७
              ६ ७ ५ ६ ४ ५|  

     ८ दण्डपाठ
पदक्रम- १ २| २ १| १ २| २ ३ | ३ २ १||     
             २ ३| ३ २| २ ३| ३ ४ | ४ ३ २||
             इस तरह से
             
        ९ रथ पाठ
पदक्रम-   १ २ ४ ५| 
               १ २ ५ ४|
               १ २ २ ३|
               ४ ५ ५ ४|
               ३ ४ ६ ७|
               ३ ४ ७ ६|
               ३ ४ ४ ५|  इत्यादि
               
        १०  घनपाठ
पदक्रम- १ २| २ १| १ २ ३| ३ २ १| 
             १ २ ३| २ ३| ३ २| २ ३ ४| ४ ३ २|
             २ ३ ४| ३ ४| ४ ३| ३ ४ ५| ५ ४ ३| इत्यादि

         ११ लेखापाठ
       पदक्रम-  १ २  २ १  १ २| २ ३ ४  ४ ५ २   २ ३  ३ ४ इत्यादि
 इस तरह से ११ तरह के पाठ हैं ।
 जिनका गुरुकुल में
ब्रह्मचारी पाठ करते हैं इससे वेद मन्त्र सुनने में कर्णप्रिय लगते हैं  और विद्यार्थी मन्त्रों को याद भी कर लेते  हैं ।
जब विदेशी आक्रांताओ ने भारत के गुरुकुल नष्ट करने शुरु किये तो दक्षिण आदि के ब्राह्मणों ने  बहुत कष्ट सहकर वेदो के पाठ को आजतक सुरक्षित रखा ।
इसलिए वेदो मे आजतक मिलावट नहीं हो पायी ।
अन्य सभी ग्रन्थों में मिलावट है सिर्फ वेदो को छोड़कर ।

*  जो तीन तरह के पाठ का अभ्यास करते हैं उनको त्रिपाठी,
जो दो वेद पढे उन्हे द्विवेदी, जो चारो पढे उनको चतुर्वेदी इस तरह से उपाधि भी दी जाने लगी थी ।
 आज भी जो लोग इन उपाधि को लगाते हैं उनके पूर्वज वैसे ही वेदपाठ करते थे । 

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